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फ़क़ीरी में ये थोड़ी सी तन-आसानी भी करते हैं | शाही शायरी
faqiri mein ye thoDi si tan-asani bhi karte hain

ग़ज़ल

फ़क़ीरी में ये थोड़ी सी तन-आसानी भी करते हैं

इरफ़ान सिद्दीक़ी

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फ़क़ीरी में ये थोड़ी सी तन-आसानी भी करते हैं
कि हम दस्त-ए-करम दुनिया पे अर्ज़ानी भी करते हैं

दर-ए-रूहानियाँ की चाकरी भी काम है अपना
बुतों की मम्लिकत में कार-ए-सुल्तानी भी करते हैं

जुनूँ वालों की ये शाइस्तगी तुर्फ़ा-तमाशा है
रफ़ू भी चाहते हैं चाक-दामानी भी करते हैं

मुझे कुछ शौक़-ए-नज़्ज़ारा भी है फूलों के चेहरों का
मगर कुछ फूल चेहरे मेरी निगरानी भी करते हैं

जो सच पूछो तो ज़ब्त-ए-आरज़ू से कुछ नहीं होता
परिंदे मेरे सीने में पुर-अफ़्शानी भी करते हैं

हमारे दिल को इक आज़ार है ऐसा नहीं लगता
कि हम दफ़्तर भी जाते हैं ग़ज़ल-ख़्वानी भी करते हैं

बहुत नौहागरी करते हैं दिल के टूट जाने की
कभी आप अपनी चीज़ों की निगहबानी भी करते हैं