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फ़क़त जज़्बात को हलचल न देना | शाही शायरी
faqat jazbaat ko halchal na dena

ग़ज़ल

फ़क़त जज़्बात को हलचल न देना

केवल कृष्ण रशी

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फ़क़त जज़्बात को हलचल न देना
ख़ुशी देना तो पल-दो-पल न देना

हमारा आज ही उजला बना दो
चलो हम को सुनहरा कल न देना

बुज़ुर्गों की ये तस्वीरें हैं बच्चो
सियाही उन पे कोई मल न देना

यूँही बहता रहूँ कलकल हमेशा
मैं झरना हूँ मुझे जल-थल न देना

इसे सोना पड़ेगा पत्थरों पर
मिरे एहसास को मख़मल न देना

मिरे अहबाब को देना सभी कुछ
मुझे चाहे सुकूँ इक पल न देना

दुआ मेरी ख़ुदा से है 'रिशी' ये
अमल देना मुझे गो फल न देना