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फ़ना के रास्ते फूलों से भर गए शायद | शाही शायरी
fana ke raste phulon se bhar gae shayad

ग़ज़ल

फ़ना के रास्ते फूलों से भर गए शायद

ख़लील मामून

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फ़ना के रास्ते फूलों से भर गए शायद
सितारे मंज़िल-ए-शब से गुज़र गए शायद

न आह दिल में न आँखों में अश्क बाक़ी हैं
हवास रिश्ता-ए-ग़म पार कर गए शायद

जो नूर भरते थे ज़ुल्मात-ए-शब के सहरा में
वो चाँद तारे फ़लक से उतर गए शायद

महकते फूल जो यादों में मुस्कुराते थे
नफ़स की तेज़ हवा से बिखर गए शायद

वफ़ा की राह में जो क़ाफ़िले रवाँ थे कहीं
वो मंज़िलों का पता ही बिसर गए शायद

चलो यहाँ से कहीं और मर रहें मामून
तुयूर-ए-ग़म भी मकाँ ख़ाली कर गए शायद