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फ़ना के दश्त में कब का उतर गया था मैं | शाही शायरी
fana ke dasht mein kab ka utar gaya tha main

ग़ज़ल

फ़ना के दश्त में कब का उतर गया था मैं

अहमद ख़याल

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फ़ना के दश्त में कब का उतर गया था मैं
तुम्हारा साथ न होता तो मर गया था मैं

किसी के दस्त-ए-हुनर ने मुझे समेट लिया
वगरना पात की सूरत बिखर गया था मैं

वो ख़ुश-जमाल चमन से गुज़र के आया तो
महक उठे थे गुलाब और निखर गया था मैं

कोई तो दश्त समुंदर में ढल गया आख़िर
किसी के हिज्र में रो रो के भर गया था मैं