फ़लक की गर्दिशें ऐसी नहीं जिन में क़दम ठहरे
सकूँ दुश्वार है क्यूँकर तबीअत कोई दम ठहरे
क़ज़ा ने दोस्तों से देखिए आख़िर किया नादिम
किए थे अहद-ओ-पैमाँ जिस क़दर वो कुल अदम ठहरे
छुआ तू ने जिसे मारा उसे ऐ अफ़ई-ए-गेसू
ये सब तिरयाक़ मेरे तजरबा करने में सम ठहरे
किया जब ग़ौर कोसों दूर निकली मंज़िल-ए-मक़्सद
कभी गर पा-ए-शल उट्ठे तो चल कर दो क़दम ठहरे
लगा कर दिल जुदा होना न थी शर्त-ए-वफ़ा साहब
ग़म-ए-फ़ुर्क़त की शिद्दत से करम जौर-ओ-सितम ठहरे
जो कुछ देखा वो आईना था आने वाली हालत का
जहाँ देखा यही आँखों के कांसे जाम-ए-जम ठहरे
अमल कहने पे अपने हज़रत-ए-वाइज़ करें पहले
गुनह के मो'तरिफ़ जब हैं तो वो कब मोहतरम ठहरे
जवानी की सियह-मस्ती में वस्फ़-ए-ज़ुल्फ़ लिक्खा था
बढ़ा वो सिलसिला ऐसा कि हम मुश्कीं क़लम ठहरे
ये साबित है कि मुतलक़ का तअय्युन हो नहीं सकता
वो सालिक ही नहीं जो चल के ता-दैर-ओ-हरम ठहरे
बशर को क़ैद-ए-कुल्फ़त माया-ए-अंदोह-ओ-आफ़त है
रहे अच्छे जो इस मेहमाँ-सरा में आ के कम ठहरे
'हबीब'-ए-ना-तवाँ से राह-ए-उल्फ़त तय नहीं होती
अजब क्या गर ये रस्ता जादा-ए-मुल्क-ए-अदम ठहरे
ग़ज़ल
फ़लक की गर्दिशें ऐसी नहीं जिन में क़दम ठहरे
हबीब मूसवी