फ़लक का हर सितारा रात की आँखों का मोती है
जिसे शबनम सहर की शोख़ किरनों में पिरोती है
वही मस्ती मिरी धड़कन है मेरे दिल की जोती है
जो तेरी नीलगूँ आँखों में गहरी नींद सोती है
ज़मीन-ए-दर्द में चाहत वफ़ा के बीज बोती है
तो क्या क्या जावेदाँ लम्हात की तख़्लीक़ होती है
तड़पती है मिरे सीने में ऐसे आरज़ू तेरी
कोई जोगन घने जंगल में जैसे छुप के रोती है
ये मेरी सोच हर ज़र्रे में सूरज की तमन्नाई
ये दिल की रौशनी को लम्हे लम्हे में समोती है
गए वक़्तों की पहनाई छलक जाती है आँखों से
अँधेरी रात में जब क़तरा क़तरा ओस रोती है
कहाँ मिलती है वो राहत नए यख़-बस्ता चेहरों में
पुराने दोस्तों से मिल के जो तस्कीन होती है
ग़ज़ल
फ़लक का हर सितारा रात की आँखों का मोती है
जमील मलिक