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फ़लक चक्कर में क्यूँ चौंसठ घड़ी है | शाही शायरी
falak chakkar mein kyun chaunsaTh ghaDi hai

ग़ज़ल

फ़लक चक्कर में क्यूँ चौंसठ घड़ी है

आशिक़ अकबराबादी

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फ़लक चक्कर में क्यूँ चौंसठ घड़ी है
गिरह उस के भी तालेअ' में कड़ी है

कोई ईसा-नफ़स है आने वाला
अजल गोशे में वो दुबकी खड़ी है

तिरे दर पर हुजूम-ए-आशिक़ाँ है
तमन्ना भी तमन्नाई खड़ी है

तबस्सुम से तिरे गुलशन में है नूर
गुलों पर चाँदनी लौटी पड़ी है

अगर आशिक़ नहीं मू-ए-कमर पर
ये चोटी किस लिए पीछे पड़ी है

कोई हटती है हसरत उन के दर से
खड़ी है डट गई है जा अड़ी है

ब-वक़्त-ए-ज़ब्ह बिस्मिल तेग़ होगी
दिल-ए-आशिक़ को ऐसी तर-फड़ी है