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फ़लक बनाया गया है ज़मीं बनाई गई | शाही शायरी
falak banaya gaya hai zamin banai gai

ग़ज़ल

फ़लक बनाया गया है ज़मीं बनाई गई

नबील अहमद नबील

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फ़लक बनाया गया है ज़मीं बनाई गई
अमाँ की कोई जगह ही नहीं बनाई गई

निकलती किस तरह कोई यक़ीन की सूरत
यक़ीन की कोई सूरत नहीं बनाई गई

चलेंगे हम भी मोहब्बत-नगर समझ के उसे
गर ऐसी कोई भी बस्ती कहीं बनाई गई

बुझे बुझे हुए मंज़र वो जिस मक़ाम के थे
हमारे रहने की सूरत वहीं बनाई गई

जब उस को ग़ौर से देखा तो आँख भर आई
समझ रहा था मैं दुनिया हसीं बनाई गई

कसक सजाई गई उस में पहले सज्दों की
फिर उस के बा'द हमारी जबीं बनाई गई

'नबील' उतारा गया मुझ को आसमान से यूँ
फ़सुर्दा ख़ाक मिरी हम-नशीं बनाई गई