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फ़ैज़ पहुँचे हैं जो बहारों से | शाही शायरी
faiz pahunche hain jo bahaaron se

ग़ज़ल

फ़ैज़ पहुँचे हैं जो बहारों से

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

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फ़ैज़ पहुँचे हैं जो बहारों से
पूछते क्या हो दिल-निगारों से

आशियाँ तो जला मगर हम को
खेलना आ गया शरारों से

क्या हुआ ये कि ख़ूँ में डूबी हुई
लपटें आती हैं लाला-ज़ारों से

उन में होते हैं क़ाफ़िले पिन्हाँ
दिल-शिकस्ता न हो ग़ुबारों से

है यहाँ कोई हौसले वाला
कुछ पयाम आए हैं सितारों से

हम से मेहर-ओ-वफ़ा की बात करो
होश की बात होशयारों से

कू-ए-जानाँ हो दैर हो कि हरम
कब मफ़र है यहाँ सहारों से