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फ़ाएदा क्या तुम्हें सुनाने का | शाही शायरी
faeda kya tumhein sunane ka

ग़ज़ल

फ़ाएदा क्या तुम्हें सुनाने का

महेश चंद्र नक़्श

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फ़ाएदा क्या तुम्हें सुनाने का
मौत उनवाँ है इस फ़साने का

हम भी अपने नहीं रहे ऐ दिल
किस से शिकवा करें ज़माने का

ज़िंदगी चौंक चौंक उट्ठी है
ज़िक्र सुन कर शराब-ख़ाने का

किस की आँखों में आए हैं आँसू
रुख़ बदलने लगा ज़माने का

बर्क़ नज़रों में कौंद उठती है
नाम सुनते ही आशियाने का

'नक़्श' कश्ती के नाख़ुदा वो हैं
लुत्फ़ है आज डूब जाने का