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एक टूटी हुई ज़ंजीर की फ़रियाद हैं हम | शाही शायरी
ek TuTi hui zanjir ki fariyaad hain hum

ग़ज़ल

एक टूटी हुई ज़ंजीर की फ़रियाद हैं हम

मेराज फ़ैज़ाबादी

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एक टूटी हुई ज़ंजीर की फ़रियाद हैं हम
और दुनिया ये समझती है कि आज़ाद हैं हम

क्यूँ हमें लोग समझते हैं यहाँ परदेसी
एक मुद्दत से इसी शहर में आबाद हैं हम

काहे का तर्क-ए-वतन काहे की हिजरत बाबा
इसी धरती की इसी देश की औलाद हैं हम

हम भी त'अमीर-ए-वतन में हैं बराबर के शरीक
दर-ओ-दीवार अगर तुम हो तो बुनियाद हैं हम

हम को इस दौर-ए-तरक़्क़ी ने दिया क्या 'मेराज'
कल भी बर्बाद थे और आज भी बर्बाद हैं हम