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एक तूफ़ान का सामान बनी है कोई चीज़ | शाही शायरी
ek tufan ka saman bani hai koi chiz

ग़ज़ल

एक तूफ़ान का सामान बनी है कोई चीज़

महताब हैदर नक़वी

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एक तूफ़ान का सामान बनी है कोई चीज़
ऐसा लगता है कहीं छूट गई है कोई चीज़

सब को इक साथ बहाए लिए जाता है ये सैल
वो तलातुम है कि अच्छी न बुरी है कोई चीज़

एक मैं क्या कि मह ओ साल उड़े जाते हैं
ऐ हवा तुझ से ज़माने में बची है कोई चीज़

इश्क़ ने ख़ुद रुख़-ए-गुलनार को बख़्शा है फ़रोग़
वर्ना कब अपने बनाए से बनी है कोई चीज़

यानी ज़ख़्मों के गुलिस्ताँ पे बहार आ गई फिर
यानी अब भी मिरी आशुफ़्ता-सरी है कोई चीज़

शाइरी क्या है मुझे भी नहीं मालूम मगर
लोग कहते हैं कि ये दिल की लगी है कोई चीज़