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एक तू, एक आशिक़ी मेरी | शाही शायरी
ek tu, ek aashiqi meri

ग़ज़ल

एक तू, एक आशिक़ी मेरी

राना आमिर लियाक़त

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एक तू, एक आशिक़ी मेरी
बस यही कुछ है ज़िंदगी मेरी

दिल क़नाअत ज़रा सी करता तो
हर मोहब्बत थी आख़िरी मेरी

जिसे तुम लोग इश्क़ कहते हो
उस से बेहतर है दिल-लगी मेरी

एक दिल के हज़ार ख़ानों में
बट गई एक ज़िंदगी मेरी

वस्ल नुक़सान कर गया मेरा
मर गई आज शाएरी मेरी