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एक तो तुझ से मिरी ज़ात को रुस्वाई मिली | शाही शायरी
ek to tujhse meri zat ko ruswai mili

ग़ज़ल

एक तो तुझ से मिरी ज़ात को रुस्वाई मिली

नियाज़ हुसैन लखवेरा

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एक तो तुझ से मिरी ज़ात को रुस्वाई मिली
और फिर ये भी सितम है कि तू हरजाई मिली

मुस्कुराता हूँ तो होंटों पे जलन होती है
तेरी चाहत में मुझे कर्ब की यकजाई मिली

फिर किसी ख़ौफ़ से जज़्बों के बदन काँप उठे
जब भी उन शबनमी आँखों से पज़ीराई मिली

एक ये लोग कि साथी भी बदल लेते हैं
इक मिरा दिल कि जिसे ज़ात की तन्हाई मिली

जिस ने दिल वालों की बस्ती में रिहाइश रक्खी
उस सियह-बख़्त को बरसों की शकेबाई मिली

ज़ाहिरन सब ही लिए फिरते हैं रौशन आँखें
वर्ना कितने ही जिन्हें रूह की बीनाई मिली

उस की आँखों में मिरा नाम फ़रोज़ाँ था 'नियाज़'
जिस के चेहरे पे मुझे अपनी शनासाई मिली