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एक तेरा ग़म जिस को राह-ए-मो'तबर जानें | शाही शायरी
ek tera gham jis ko rah-e-motabar jaanen

ग़ज़ल

एक तेरा ग़म जिस को राह-ए-मो'तबर जानें

ज़ेहरा निगाह

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एक तेरा ग़म जिस को राह-ए-मो'तबर जानें
इस सफ़र में हम किस को अपना हम-सफ़र जानें

जिस से कुछ न कह पाएँ जान-ए-गुफ़्तुगू ठहरे
जिस से कम मिलें उस को सब से बेशतर जानें

अपना अक्स भी अक्सर साथ छोड़ जाता है
ये मआल-ए-ख़ुद-बीनी काश शीशागर जानें

तार-तार कर डालें सब्र-ओ-ज़ब्त का दामन
ज़ख़्म ज़ख़्म दिखला दें जर्फ़-ए-चारा-गर जानें