एक तरीक़ा ये भी है जब जीना इक नाचारी हो
हाथ बंधे हों सीने पर दिल बैअत से इंकारी हो
जश्न-ए-ज़फ़र एक और सफ़र की साअत का दीबाचा है
ख़ेमा-ए-शब में रक़्स भी हो और कूच की भी तय्यारी हो
इस से कम पर रम-ख़ुर्दों का कौन तआक़ुब करता है
या बानू-ए-कू-ए-अवध हो या आहू-ए-ततारी हो
दाइम है सुल्तानी हम शहज़ादों ख़ाक-निहादों की
बर्क़-ओ-शरर की मसनद हो या तख़्त-ए-बाद-ए-बहारी हो
हम तो रात का मतलब समझें ख़्वाब, सितारे, चाँद, चराग़
आगे का अहवाल वो जाने जिस ने रात गुज़ारी हो
ग़ज़ल
एक तरीक़ा ये भी है जब जीना इक नाचारी हो
इरफ़ान सिद्दीक़ी