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एक सूरत तिरी बनाने में | शाही शायरी
ek surat teri banane mein

ग़ज़ल

एक सूरत तिरी बनाने में

अरशद लतीफ़

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एक सूरत तिरी बनाने में
रंग मसरूफ़ हैं ज़माने में

फैलती जा रही है ये दुनिया
जश्न-ए-आवारगी मनाने में

क़तरा क़तरा टपक रहा है दिल
क़िस्सा-ए-आशिक़ी सुनाने में

कैसे कैसे वजूद रौशन हैं
वक़्त के नीले शामियाने में

मेरा पैकर मुझे अता कर दे
क्या कमी है तिरे ख़ज़ाने में