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एक सूखी हड्डियों का इस तरफ़ अम्बार था | शाही शायरी
ek sukhi haDDiyon ka is taraf ambar tha

ग़ज़ल

एक सूखी हड्डियों का इस तरफ़ अम्बार था

अतीक़ुल्लाह

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एक सूखी हड्डियों का इस तरफ़ अम्बार था
और उधर उस का लचीला गोश्त इक दीवार था

रेल की पटरी ने उस के टुकड़े टुकड़े कर दिए
आप अपनी ज़ात से उस को बहुत इंकार था

लोग नंगा करने के दरपय थे मुझ को और मैं
बे-सर-ओ-सामानियों के नश्शे में सरशार था

मुझ में ख़ुद मेरी अदम-मौजूदगी शामिल रही
वर्ना इस माहौल में जीना बहुत दुश्वार था