एक से जज़्बे ख़ून में सुर्ख़ी एक ही थी
देस जुदा थे प्यार करंसी एक ही थी
उस पर भी बस लैला लैला लिक्खा था
उस के पास अगरचे तख़्ती एक ही थी
घोड़े बनाना छोड़ दिए कुम्हारों ने
गाँव में डूबने वाली लड़की एक ही थी
हिस्सा-बख़रे बाँट लिए हैं लोगों ने
बेचारे क्या करते धरती एक ही थी
फिर कोई तूफ़ान न आया ठीक हुआ
वर्ना नूह के पास भी कश्ती एक ही थी
उस के बा'द सराब था या वीराने थे
सात ज़मीनों पर भी बस्ती एक ही थी
अपने सामने मैं ख़ुद ही सफ़-आरा था
और मिरी बंदूक़ में गोली एक ही थी
ग़ज़ल
एक से जज़्बे ख़ून में सुर्ख़ी एक ही थी
मुनीर सैफ़ी