एक सहरा है मिरी आँख में हैरानी का
मेरे अंदर तो मगर शोर है तुग़्यानी का
कोई दरवेश-ए-ख़ुदा-मस्त अभी शहर में है
नक़्श बाक़ी है अभी दश्त की वीरानी का
साँस रोके है खड़ी दर से तिरे दूर हवा
ख़ाक-ए-दिल ये है सबब तेरी परेशानी का
हम फ़क़ीरों का तवक्कुल ही तो सरमाया है
शिकवा किस मुँह से करें बे-सर-ओ-सामानी का
दिल के बाज़ार में हलचल सी मचा दी उस ने
मुझ को भी धोका हुआ युसूफ़-ए-ला-सानी का
देखता हूँ मैं अभी ख़्वाब उसी के शब ओ रोज़
ये ख़ुलासा है मिरे क़िस्सा-ए-तूलानी का

ग़ज़ल
एक सहरा है मिरी आँख में हैरानी का
रफ़ीक राज़