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एक सहरा है मिरी आँख में हैरानी का | शाही शायरी
ek sahra hai meri aankh mein hairani ka

ग़ज़ल

एक सहरा है मिरी आँख में हैरानी का

रफ़ीक राज़

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एक सहरा है मिरी आँख में हैरानी का
मेरे अंदर तो मगर शोर है तुग़्यानी का

कोई दरवेश-ए-ख़ुदा-मस्त अभी शहर में है
नक़्श बाक़ी है अभी दश्त की वीरानी का

साँस रोके है खड़ी दर से तिरे दूर हवा
ख़ाक-ए-दिल ये है सबब तेरी परेशानी का

हम फ़क़ीरों का तवक्कुल ही तो सरमाया है
शिकवा किस मुँह से करें बे-सर-ओ-सामानी का

दिल के बाज़ार में हलचल सी मचा दी उस ने
मुझ को भी धोका हुआ युसूफ़-ए-ला-सानी का

देखता हूँ मैं अभी ख़्वाब उसी के शब ओ रोज़
ये ख़ुलासा है मिरे क़िस्सा-ए-तूलानी का