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एक रौज़न के अभी किरदार में हूँ मैं | शाही शायरी
ek rauzan ke abhi kirdar mein hun main

ग़ज़ल

एक रौज़न के अभी किरदार में हूँ मैं

सौरभ शेखर

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एक रौज़न के अभी किरदार में हूँ मैं
ग़ौर से देखो इसी दीवार में हूँ मैं

सब मनाज़िर ज़र्द से पड़ने लगे हैं या
बे-यक़ीनी के इसी आज़ार में हूँ मैं

टूट जाए आसमाँ धरती भी फट जाए
क्या मुझे पर्वा कि बज़्म-ए-यार में हूँ मैं

ज़ेहन में औलाद है और घर की जानिब हूँ
रुक नहीं सकता अभी रफ़्तार में हूँ मैं

घर की हर शय क्यूँ मुझे बे-नूर लगती है
क्या ज़ियादा आज कल बाज़ार में हूँ मैं

शोहरतों का आख़िरी चारा जराएम थे
देखिए अब किस क़दर अख़बार में हूँ मैं

गुफ़्तुगू से कब मुझे परहेज़ है 'सौरभ'
बोलता सुनता मगर अशआ'र में हूँ मैं