एक पल जा न कहूँ नैन सूँ ऐ नूर-ए-बसर 
टुक न हो इस दिल-ए-तारीक सूँ ऐ बद्र बदर 
तेरी इस सुब्ह बिना गोश-ओ-ख़त-ए-मुश्कीं सूँ 
सैर करता हूँ अजब शाम-ओ-सहर शाम-ओ-सहर 
जल के मैं सुर्मा हुआ बल्कि हुआ काजल भी 
ख़ाना-ए-चश्म में तुझ पाऊँ जो टुक राह मगर 
राह-दाराँ लेवें हर गाम में जीव का हासिल 
हैगा इस राह में ऐ उम्र-ए-अबद जाँ का ख़तर 
क़िबले सूँ मूँह फिराया तिरे मुख की जानिब 
किया ज़ाहिद ने मके सूँ सू-ए-बुत-ख़ाना सफ़र 
चाँद सूरज की रख ऐनक कूँ सदा पीर-ए-फ़लक 
ख़म हो करता है नज़र ताकि देखे तेरी कमर
        ग़ज़ल
एक पल जा न कहूँ नैन सूँ ऐ नूर-ए-बसर
फ़ाएज़ देहलवी

