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एक पैकर यूँ चमक उट्ठा है मेरे ध्यान में | शाही शायरी
ek paikar yun chamak uTTha hai mere dhyan mein

ग़ज़ल

एक पैकर यूँ चमक उट्ठा है मेरे ध्यान में

अफ़ज़ल मिनहास

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एक पैकर यूँ चमक उट्ठा है मेरे ध्यान में
कोई जुगनू उड़ रहा हो जिस तरह तूफ़ान में

हर बगूला बस्तियों की सम्त लहराने लगा
आश्ना चेहरे भी अब आते नहीं पहचान में

क्या क़यामत है कि कोई पूछने वाला नहीं
ज़िंदगी तन्हा खड़ी है हश्र के मैदान में

वक़्त पड़ते ही हुए रू-पोश सब हल्क़ा-ब-गोश
इक यही ख़ूबी तो है इस दौर के इंसान में

आइने यादों के मैं ने तोड़ डाले थे मगर
चंद चेहरे फिर उभर आए मिरे विज्दान में

लोग मेरी मौत के ख़्वाहाँ हैं 'अफ़ज़ल' किस लिए
चंद ग़ज़लों के सिवा कुछ भी नहीं सामान में