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एक पहुँचा हुआ मुसाफ़िर है | शाही शायरी
ek pahuncha hua musafir hai

ग़ज़ल

एक पहुँचा हुआ मुसाफ़िर है

ज़ुबैर अली ताबिश

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एक पहुँचा हुआ मुसाफ़िर है
दिल भटकने में फिर भी माहिर है

कौन लाया है इश्क़ पर ईमाँ
मैं भी काफ़िर हूँ तू भी काफ़िर है

दर्द का वो जो हर्फ़-ए-अव्वल था
दर्द का वो ही हर्फ़-ए-आख़िर है

काम अधूरा पड़ा है ख़्वाबों का
आज फिर नींद ग़ैर-हाज़िर है

लाज रख ली तिरी समाअ'त ने
वर्ना 'ताबिश' भी कोई शाइर है