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एक मुट्ठी एक सहरा भेज दे | शाही शायरी
ek muTThi ek sahra bhej de

ग़ज़ल

एक मुट्ठी एक सहरा भेज दे

ज़फ़र गोरखपुरी

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एक मुट्ठी एक सहरा भेज दे
कोई आँधी मेरा हिस्सा भेज दे

ज़िंदगी बच्ची है इस का दिल न तोड़
ख़्वाब की नन्ही से गुड़िया भेज दे

अक्स ख़ाका धुँद परछाईं ग़ुबार
मेरे क़ाबिल कोई तोहफ़ा भेज दे

सौ बरस की उम्र ले कर क्या करूँ
चैन का बे-क़ैद लम्हा भेज दे

आसमाँ बिन्त-ए-ज़मीं के वास्ते
सात रंगों का दुपट्टा भेज दे