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एक मुद्दत से उसे हम ने जुदा रक्खा है | शाही शायरी
ek muddat se use humne juda rakkha hai

ग़ज़ल

एक मुद्दत से उसे हम ने जुदा रक्खा है

प्रेम भण्डारी

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एक मुद्दत से उसे हम ने जुदा रक्खा है
ये अलग बात है यादों में बसा रक्खा है

है ख़ला चारों तरफ़ उस के तो हम क्यूँ न कहें
किस ने इस धरती को काँधों पे उठा रक्खा है

जो सदा साथ रहे और दिखाई भी न दे
नाम उस का तो ज़माने ने ख़ुदा रक्खा है

मिरे चेहरे पे उजाला है तो हैराँ क्यूँ है
हम ने सपने में भी एक चाँद छुपा रक्खा है

जो तलब चाँदनी रातों में भटकती ही रही
अब उसे धूप की चादर में सुला रक्खा है