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एक मुद्दत से तुझे दिल में बसा रक्खा है | शाही शायरी
ek muddat se tujhe dil mein basa rakkha hai

ग़ज़ल

एक मुद्दत से तुझे दिल में बसा रक्खा है

रईस अंसारी

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एक मुद्दत से तुझे दिल में बसा रक्खा है
मैं तुझे याद-दहानी से अलग रखता हूँ

वो सुनेगा तो छलक उट्ठेंगी आँखें उस की
इस लिए ख़ुद को कहानी से अलग रखता हूँ

वो जो बचपन में तिरे साथ पढ़ा करता था
उन किताबों को निशानी से अलग रखता हूँ

तज़्किरा उस का ग़ज़ल में नहीं करता हूँ 'रईस'
मैं उसे लफ़्ज़-ओ-मआ'नी से अलग रखता हूँ