एक मेहमाँ का हिज्र तारी है
मेज़बानी की मश्क़ जारी है
सिर्फ़ हल्की सी बे-क़रारी है
आज की रात दिल पे भारी है
कोई पंछी कोई शिकारी है
ज़िंदा रहने की जंग जारी है
बस तिरे ग़म की ग़म-गुसारी है
और क्या शाएरी हमारी है
आप करते हैं शबनमी बातें
और मिरी प्यास रेग-ज़ारी है
अब कहाँ दश्त में जुनूँ वाले
जिस को देखो वही शिकारी है
मेरे आँसू नहीं हैं ला-वारिस
इक तबस्सुम से रिश्ते-दारी है
ग़ज़ल
एक मेहमाँ का हिज्र तारी है
फ़हमी बदायूनी