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एक मेहमाँ का हिज्र तारी है | शाही शायरी
ek mehman ka hijr tari hai

ग़ज़ल

एक मेहमाँ का हिज्र तारी है

फ़हमी बदायूनी

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एक मेहमाँ का हिज्र तारी है
मेज़बानी की मश्क़ जारी है

सिर्फ़ हल्की सी बे-क़रारी है
आज की रात दिल पे भारी है

कोई पंछी कोई शिकारी है
ज़िंदा रहने की जंग जारी है

बस तिरे ग़म की ग़म-गुसारी है
और क्या शाएरी हमारी है

आप करते हैं शबनमी बातें
और मिरी प्यास रेग-ज़ारी है

अब कहाँ दश्त में जुनूँ वाले
जिस को देखो वही शिकारी है

मेरे आँसू नहीं हैं ला-वारिस
इक तबस्सुम से रिश्ते-दारी है