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एक मौहूम सी ख़ुशी की तरह | शाही शायरी
ek mauhum si KHushi ki tarah

ग़ज़ल

एक मौहूम सी ख़ुशी की तरह

मीर नक़ी अली ख़ान साक़िब

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एक मौहूम सी ख़ुशी की तरह
तुम मिले भी तो अजनबी की तरह

तीरगी के उदास जंगल में
हम भटकते हैं रौशनी की तरह

ग़म-ए-दौराँ सँवार दूँ तुझ को
अपने गीतों की दिलकशी की तरह

याद-ए-जानाँ उतर के आई है
शब के ज़ीने से चाँदनी की तरह

मेहरबाँ हो के साथ चलती है
ज़िंदगी दर्द-ए-ज़िंदगी की तरह

आरज़ू का हसीं सवेरा भी
आज नाराज़ है किसी की तरह

ज़िंदगी का ख़याल भी 'साक़िब'
रूठ जाए न ज़िंदगी की तरह