एक जुगनू है मेरी मुट्ठी में
शोर बरपा है सारी बस्ती में
जल गए फिर से कुछ हसीं रिश्ते
तंज़िया गुफ़्तुगू की भट्टी में
दिल की तारीकियाँ हुईं रौशन
कोई ज़िंदा है मेरी हस्ती में
जो गुनाहों में ग़र्क़ रहते थे
आज गुम हैं ख़ुदा-परस्ती में
धीमे धीमे पता चला 'जावेद'
अन-गिनत ख़ूबियाँ हैं दिल्ली में
ग़ज़ल
एक जुगनू है मेरी मुट्ठी में
मालिकज़ादा जावेद