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एक जुगनू है मेरी मुट्ठी में | शाही शायरी
ek jugnu hai meri muTThi mein

ग़ज़ल

एक जुगनू है मेरी मुट्ठी में

मालिकज़ादा जावेद

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एक जुगनू है मेरी मुट्ठी में
शोर बरपा है सारी बस्ती में

जल गए फिर से कुछ हसीं रिश्ते
तंज़िया गुफ़्तुगू की भट्टी में

दिल की तारीकियाँ हुईं रौशन
कोई ज़िंदा है मेरी हस्ती में

जो गुनाहों में ग़र्क़ रहते थे
आज गुम हैं ख़ुदा-परस्ती में

धीमे धीमे पता चला 'जावेद'
अन-गिनत ख़ूबियाँ हैं दिल्ली में