एक जल्वा ब-सद अंदाज़-ए-नज़र देख लिया
तुझ को ही देखा किए तुझ को अगर देख लिया
जैसे सर फोड़ के मिल जाएगी ज़िंदाँ से नजात
क्या जुनूँ ने कोई दीवार में दर देख लिया
बाज़ है आज तलक दीदा-ए-हैराँ की तरह
दश्त-ए-वहशत ने किसे ख़ाक-बसर देख लिया
जुर्म-ए-नज़्ज़ारा की पाता है सज़ा दिल अब तक
अहल-ए-दिल देख लिया अहल-ए-नज़र देख लिया
सूरत-ए-नक़्श-ए-क़दम दीदा-ए-मुश्ताक़ हैं हम
जब भी वो आया सर-ए-राहगुज़र देख लिया
यही हसरत है कि वो एक नज़र देख तो ले
और उस ने कभी इस सम्त अगर देख लिया
कहीं पर्दा है तजल्ली कहीं जल्वा है हिजाब
ये तमाशा भी तिरा ज़ौक़-ए-नज़र देख लिया
रोज़ इक ताज़ा ग़म-ए-दहर है नाज़िल 'ताबिश'
एक तूफ़ान-ए-बला ने मिरा घर देख लिया
ग़ज़ल
एक जल्वा ब-सद अंदाज़-ए-नज़र देख लिया
ताबिश देहलवी