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एक जग बीत गया झूम के आए बादल | शाही शायरी
ek jag bit gaya jhum ke aae baadal

ग़ज़ल

एक जग बीत गया झूम के आए बादल

सय्यद अहमद शमीम

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एक जग बीत गया झूम के आए बादल
वो समुंदर ही कहाँ है जो उठाए बादल

न कभी टूट के बरसे न ये मायूस करे
दूर ही दूर से आँखों लुभाए बादल

रात आई कि कहीं आप ने खोले गेसू
दोश पर शोख़ हवाओं के जो आए बादल

ये ज़मीं चीख़ती रहती है कि पानी पानी
कोई तूफ़ाँ कोई सैलाब ही लाए बादल

मेरे सर पर तो सदा धूप के नेज़े चमके
वो मुसाफ़िर मैं कहाँ हूँ कि जो पाए बादल

खो गए जाने कहाँ तुंद हवाओं के बग़ैर
एक मुद्दत से है सूरज को छुपाए बादल

मेघ मल्हार की लय आग उगाती है 'शमीम'
पिछली बरसात की फिर याद दिलाए बादल