एक ही आवाज़ पर वापस पलट आएँगे लोग
तुझ को फिर अपने घरों में ढूँडने जाएँगे लोग
डूबते सूरज की सूरत मेरा चेहरा देख लो
फिर कहाँ बाब-ए-मआनी ढूँडने जाएँगे लोग
मत कहो क़िस्मत है अपनी बे-दिली नाग़ुफ़्तनी
फिर सहर होगी दरख़्शाँ फिर भले आएँगे लोग
पल झपकने तक है ये हंगामा-ए-वारफ़्तगी
जब नज़र से दूर होगे भूलते जाएँगे लोग
फिर नई ख़्वाहिश के ज़र्रों से बनाएँगे नगर
फिर नई रस्म-ए-तलब रस्म-ए-वफ़ा लाएँगे लोग
मुनहसिर रंगों की आतिश पर नहीं है दिलकशी
मैले कपड़ों में भी तुझ को देखने आएँगे लोग
ग़ज़ल
एक ही आवाज़ पर वापस पलट आएँगे लोग
किश्वर नाहीद