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एक हंगामा बपा है मुझ में | शाही शायरी
ek hangama bapa hai mujh mein

ग़ज़ल

एक हंगामा बपा है मुझ में

आज़ाद गुलाटी

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एक हंगामा बपा है मुझ में
कोई तो मुझ से बड़ा है मुझ में

इंकिसारी मिरा शेवा है मगर
इक ज़रा ज़ोम-ए-अना है मुझ में

मुझ से वो कैसे बड़ा है कहिए
जब ख़ुदा मेरा छुपा है मुझ में

मैं नहीं हूँ तो मिरा कौन है ये
इतने जन्मों जो रहा है मुझ में

वही लम्हे तो ग़ज़ल छेड़ते हैं
जिन की गुम-गश्ता सदा है मुझ में

दश्त-ए-ज़ुल्मात में हम-राह मिरे
कोई तो है जो जला है मुझ में