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एक हंगामा बपा है अर्सा-ए-अफ़्लाक पर | शाही शायरी
ek hangama bapa hai arsa-e-aflak par

ग़ज़ल

एक हंगामा बपा है अर्सा-ए-अफ़्लाक पर

सालिम सलीम

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एक हंगामा बपा है अर्सा-ए-अफ़्लाक पर
ख़ामुशी फैला रखी है आज मैं ने ख़ाक पर

अब मिरा सारा हुनर मिट्टी में मिल जाने है
हाथ उस ने रख दिए हैं दीदा-ए-नमनाक पर

रोज़ बढ़ती ही चली जाती है बीनाई मिरी
रोज़ रख देता हूँ आँखों को तेरी पोशाक पर