एक दुनिया बना गई मिट्टी
जिस घड़ी रूह पा गई मिट्टी
जिस ने सोचा कि रौंद दें उस को
आख़िर इक दिन चबा गई मिट्टी
मैं ने जितने भी बीज बोए थे
बाँझ औरत थी खा गई मिट्टी
तिश्नगी थी कुएँ की क़ीमत में
बदली छाई गिरा गई मिट्टी
सुर्ख़-रू है वो सारी दुनिया में
साथ जिस का निभा गई मिट्टी
सब क़बाले उठा के ले आई
किसी की है ये बता गई मिट्टी
किस ने कब किस को कैसे क़त्ल किया
शक्ल सब की छुपा गई मिट्टी

ग़ज़ल
एक दुनिया बना गई मिट्टी
लईक़ आजिज़