एक दिन वस्ल से अपने मुझे तुम शाद करो
फिर मिरी जान जो कुछ चाहो सो बे-दाद करो
गर किसी ग़ैर को फ़रमाओगे तब जानोगे
वे हमीं हैं कि बजा लावें जो इरशाद करो
अब तो वीराँ किए जाते हो तरब-ख़ाना-ए-दिल
आह क्या जाने कब आ फिर इसे आबाद करो
याद में उस क़द ओ रुख़्सार के ऐ ग़म-ज़दगाँ
जा के टुक बाग़ में सैर-ए-गुल-ओ-शमशाद करो
ले के दिल चाहो कि फिर देवे वो दिलबर मालूम
कैसे ही नाला करो कैसी ही फ़रियाद करो
सुर्मा-ए-दीदा-ए-उश्शाक़ है ये ऐ ख़ूबाँ
अपने कूचे से मिरी ख़ाक न बर्बाद करो
देख कर ताइर-ए-दिल आप को भूला पर्वाज़
ख़्वाह पाबंद करो ख़्वाह उसे आज़ाद करो
आप की चाह से चाहें हैं मुझे सब वर्ना
कौन फिर याद करे तुम न अगर याद करो
शम्-ए-अफ़रोख़्ता जब बज़्म में देखो यारो
हाल-ए-'बेदार'-ए-जिगर-सोख़्ता वाँ याद करो
ग़ज़ल
एक दिन वस्ल से अपने मुझे तुम शाद करो
मीर मोहम्मदी बेदार