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एक चराग़ यहाँ मेरा है एक दिया वहाँ तेरा | शाही शायरी
ek charagh yahan mera hai ek diya wahan tera

ग़ज़ल

एक चराग़ यहाँ मेरा है एक दिया वहाँ तेरा

मोहम्मद इज़हारुल हक़

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एक चराग़ यहाँ मेरा है एक दिया वहाँ तेरा
बीच में अक़लीमें पड़ती हैं पानी और अँधेरा

कोई न जाने कौन सा लफ़्ज़ है जिस से जी उठ्ठूँगा
जिस ताइर में जान है मेरी उस का दूर बसेरा

साहिल पर तो हाथ को हाथ सुझाई नहीं देता है
शायद किसी जहाज़ में भर कर लाए कोई सवेरा

भरा हुआ है जानवरों और साँपों से ये जंगल
हिज्र दिखाई देता था बाहर से सब्ज़ घनेरा

धूप और बारिश भेजने वाले मेरी भी सुन लेना
तेरे बाग़ के गोशे में इक कच्चा फूल है मेरा