एक अर्ज़-ए-मुद्दआ होने से पहले
सोच लेना था ख़ुदा होने से पहले
ख़्वाहिशें कितनी अधूरी रह गई हैं
जिस्म ओ जाँ में फ़ासला होने से पहले
आख़िरी तहरीर है आब-ए-रवाँ पर
आख़िरी बोसा क़ज़ा होने से पहले
इस क़दर मीठा न होना चाहिए था
उन लबों को ज़ाइक़ा होने से पहले
उस की आँखों के पियाले नाचते हैं
खो गए कितने नशा होने से पहले
कौन जाने डूबना है या उभरना
पानियों में रास्ता होने से पहले
ख़ुद-कुशी कर ली चमकते चाँद ने भी
आख़िर-ए-शब आइना होने से पहले
शहर से शादाँ गुज़र जाना है बेहतर
मुश्तइल आब-ओ-हवा होने से पहले
वो मकीन-ए-दिल हुआ ख़ुर्शीद-'अकबर'
घर का दरवाज़ा खुला होने से पहले
ग़ज़ल
एक अर्ज़-ए-मुद्दआ होने से पहले
खुर्शीद अकबर