एक अंदोह-ए-बे-क़यास में हूँ
आग हूँ ख़ाक के लिबास में हूँ
क्या सुकूनत सरा-ए-फ़ानी की
एक ता'मीर-ए-बे-असास में हूँ
दूर आब-ए-फुरात-ए-फ़न है हनूज़
कर्बला-ए-सुख़न की प्यास में हूँ
कोई सुनता तो क़द्र भी करता
एक सहरा-ए-ना-सिपास में हूँ
शम-ए-उम्मीद हूँ मगर 'सहबा'
बंद फ़ानूस-ए-रंज-ओ-यास में हूँ
ग़ज़ल
एक अंदोह-ए-बे-क़यास में हूँ
सहबा अख़्तर