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एक अंदोह-ए-बे-क़यास में हूँ | शाही शायरी
ek andoh-e-be-qayas mein hun

ग़ज़ल

एक अंदोह-ए-बे-क़यास में हूँ

सहबा अख़्तर

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एक अंदोह-ए-बे-क़यास में हूँ
आग हूँ ख़ाक के लिबास में हूँ

क्या सुकूनत सरा-ए-फ़ानी की
एक ता'मीर-ए-बे-असास में हूँ

दूर आब-ए-फुरात-ए-फ़न है हनूज़
कर्बला-ए-सुख़न की प्यास में हूँ

कोई सुनता तो क़द्र भी करता
एक सहरा-ए-ना-सिपास में हूँ

शम-ए-उम्मीद हूँ मगर 'सहबा'
बंद फ़ानूस-ए-रंज-ओ-यास में हूँ