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एहतिमाम-ए-रंग-ओ-बू से गुलिस्ताँ पैदा करें | शाही शायरी
ehtimam-e-rang-o-bu se gulistan paida karen

ग़ज़ल

एहतिमाम-ए-रंग-ओ-बू से गुलिस्ताँ पैदा करें

उरूज ज़ैदी बदायूनी

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एहतिमाम-ए-रंग-ओ-बू से गुलिस्ताँ पैदा करें
आओ मिल-जुल कर बहार-ए-बे-ख़िज़ाँ पैदा करें

क्यूँ सुकूत-ए-बे-महल से दास्ताँ पैदा करें
दीदा-ओ-दानिस्ता अपने राज़दाँ पैदा करें

रास आ सकता है मीर-ए-कारवाँ बनने का ख़्वाब
शर्त ये है पहले अपना कारवाँ पैदा करें

कार-आराई तो ख़ुद है हासिल-ए-तकमील-ए-कार
दिल में क्या अंदेशा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ पैदा करें

अपना एजाज़-ए-तसव्वुर देखने की चीज़ है
हम जो चाहें तो मकाँ में ला-मकाँ पैदा करें

वक़्त को ज़िद ही बदल दो रस्म-ए-अर्ज़-ए-मुद्दआ'
दिल ये कहता है कि हंगामा कहाँ पैदा करें

आप की मर्ज़ी का है पाबंद-ए-रंग-ए-गुलिस्ताँ
आप चाहें तो बहार-ए-जावेदाँ पैदा करें

रूह पर हावी न हो जाए फ़ज़ा-ए-सोगवार
हम ग़म-ए-दिल से निशात-ए-जावेदाँ पैदा करें

कोशिश-ए-तामीर की तख़रीब-सामानी न पूछ
आशियाँ-बरदार शाख़ें बिजलियाँ पैदा करें

हाँ सिखा दें रंग-ए-रुख़ को आइना-दारी का फ़न
बहर-ए-अर्ज़-ए-मुद्दआ' हम तर्जुमाँ पैदा करें

फिर बुलाता तूँ के ये तेवर कहाँ बाक़ी 'उरूज'
हाल-ए-दिल कह कर जवाब-ए-दरमियाँ पैदा करें