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एहसास के सूखे पत्ते भी अरमानों की चिंगारी भी | शाही शायरी
ehsas ke sukhe patte bhi armanon ki chingari bhi

ग़ज़ल

एहसास के सूखे पत्ते भी अरमानों की चिंगारी भी

आज़िम कोहली

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एहसास के सूखे पत्ते भी अरमानों की चिंगारी भी
इक दिल सीने में टूटा सा और फ़ितरत में दिलदारी भी

मस्त उमंगों के झोंके और फ़ाक़ा मस्ती का आलम
हसरत की तेज़ हवाएँ भी उम्मीद की आतिश-बारी भी

दिल पर खोले उड़ने के लिए उड़ने का मगर इम्कान कहाँ
रोकें पैरों की ज़ंजीरें पिंजरे की चार-दिवारी भी

देखा न तुझे ऐ रब हम ने हाँ दुनिया तेरी देखी है
सड़कों पर भूके बच्चे भी कोठे पर अब्ला नारी भी

बेहाल न हो यूँ नादाँ दिल हर हाल में जीना है लाज़िम
है रस्ते में आसानी भी मजबूरी भी दुश्वारी भी

इक खेल मुसलसल गर्दिश का देखा है हम ने गुलशन में
फूलों का खिल कर मुरझाना और कलियों की किलकारी भी

मंज़िल पे न पहुँचा जब कोई इल्ज़ाम उसी पर क्यूँ आए
रह-रव के भटकने में है कुछ रहबर की ज़िम्मे-दारी भी

'आज़िम' तेरी बर्बादी में सब ने मिल-जुल कर काम किया
कुछ खेल लकीरों का भी है कुछ वक़्त की कार-गुज़ारी भी