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ए'तिबार-ए-शौक़ इक धोका सही | शाही शायरी
etibar-e-shauq ek dhoka sahi

ग़ज़ल

ए'तिबार-ए-शौक़ इक धोका सही

आमिर मौसवी

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ए'तिबार-ए-शौक़ इक धोका सही
ए'तिबार-ए-शौक़ पर है ज़िंदगी

सूनी यादो तुम से पहलू है बसा
सूनी यादो तुम से क्या पहलू-तही

दिल हुआ छलनी तो नग़्मे छन पड़े
बाँस में रौज़न पड़े तो बाँसुरी

बे-कसी में भी बड़ा कस-बल है दोस्त
मौत क्या है ज़ीस्त को ठुकरा के जी

हम ख़ुदा भी मान लेंगे आप को
आप पहले हो तो जाएँ आदमी

क्या यद-ए-बैज़ा से कम है दाग़-ए-दिल
मोजज़ा रखता हूँ 'आमिर'-मूसवी