EN اردو
एतबार-ए-आरज़ू का कर्र-ओ-फ़र जाता रहा | शाही शायरी
etibar-e-arzu ka karr-o-far jata raha

ग़ज़ल

एतबार-ए-आरज़ू का कर्र-ओ-फ़र जाता रहा

लक्ष्मी नारायण फ़ारिग़

;

एतबार-ए-आरज़ू का कर्र-ओ-फ़र जाता रहा
दिल से इरफ़ान-ए-मोहब्बत का असर जाता रहा

शम्अ' सोज़-ए-ग़म का क़िस्सा रात भर कहती रही
दे के परवाना पयाम-ए-मुख़्तसर जाता रहा

अहद-ए-रफ़्ता को न देखा लौट कर आते हुए
एतबार-ए-गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर जाता रहा

हो सकेगा फिर न सैक़ल जौहर-ए-किरदार-ए-ज़ीस्त
गर जहाँ से ए'तबार-ए-ख़ैर-ओ-शर जाता रहा

ए'तिबार-ए-आरज़ू-ए-मुख़्तसर बाक़ी सही
ए'तिबार-ए-जज़्बा-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र जाता रहा

मुश्किलात-ए-इश्क़ का उक़्दा न फिर भी वा हुआ
नामा-बर आता रहा और नामा-बर जाता रहा

फ़िक्र-ए-बेश-ओ-कम के 'फ़ारिग़' मरहले तय हो गए
दिल से एहसास-ए-ग़म नफ़-ओ-ज़रर जाता रहा