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दूसरा किनारा भी बे-वफ़ा किनारा है | शाही शायरी
dusra kinara bhi be-wafa kinara hai

ग़ज़ल

दूसरा किनारा भी बे-वफ़ा किनारा है

इसहाक़ विरदग

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दूसरा किनारा भी बे-वफ़ा किनारा है
अब तो डूब जाना ही आख़िरी सहारा है

मैं उतर नहीं सकता दूसरे किनारे पर
दूसरा किनारा तो दूसरा किनारा है

मुझ पे अब मोहब्बत में ज़हर पीना वाजिब है
मैं ने दिल नहीं हारा हौसला भी हारा है

आसमां की वुसअ'त में जाने अब कहाँ होगा
वो जो मेरी क़िस्मत का बे-ख़बर सितारा है

वक़्त की अदालत का फ़ैसला यही है अब
मैं भी इक ख़सारा हूँ तू भी इक ख़सारा है

दूसरे किनारे पर ये ख़बर हुई मुझ को
वो तो इस कहानी में तीसरा किनारा है

मैं ने तेरे हिस्से के रतजगे भी काटे हैं
मैं ने तेरे हिस्से का क़र्ज़ भी उतारा है