दूर तक फैला हुआ पानी ही पानी हर तरफ़
अब के बादल ने बहुत की मेहरबानी हर तरफ़
हादसे हर मोड़ पर हैं घात में क्या कीजिए
किस क़दर अर्ज़ां है मर्ग-ए-ना-गहानी हर तरफ़
जा छुपे अंधी गुफा में जो क़द-आवर लोग थे
और बौनों की हुई है हुक्मरानी हर तरफ़
आग के चप्पू हवा के बादबाँ मिट्टी की नाव
और ता-हद्द-ए-नज़र पानी ही पानी हर तरफ़
बेबसी पर अपनी ख़ुद अल्फ़ाज़ हैराँ हैं 'शबाब'
इस्तिआरों ने बदल डाले मआ'नी हर तरफ़
ग़ज़ल
दूर तक फैला हुआ पानी ही पानी हर तरफ़
शबाब ललित