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दूर से बात ख़ुश नहीं आती | शाही शायरी
dur se baat KHush nahin aati

ग़ज़ल

दूर से बात ख़ुश नहीं आती

मीर मोहम्मदी बेदार

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दूर से बात ख़ुश नहीं आती
यूँ मुलाक़ात ख़ुश नहीं आती

तुझ बिन ऐ माह-रू कभी मुझ को
चाँदनी रात ख़ुश नहीं आती

जाए बोसा के गालियाँ दीजे
ये इनायात ख़ुश नहीं आती

न मय-ओ-जाम है न साक़ी है
ऐसी बरसात ख़ुश नहीं आती

उस के मज़कूर के सिवा 'बेदार'
और कुछ बात ख़ुश नहीं आती