दूर से बात ख़ुश नहीं आती
यूँ मुलाक़ात ख़ुश नहीं आती
तुझ बिन ऐ माह-रू कभी मुझ को
चाँदनी रात ख़ुश नहीं आती
जाए बोसा के गालियाँ दीजे
ये इनायात ख़ुश नहीं आती
न मय-ओ-जाम है न साक़ी है
ऐसी बरसात ख़ुश नहीं आती
उस के मज़कूर के सिवा 'बेदार'
और कुछ बात ख़ुश नहीं आती
ग़ज़ल
दूर से बात ख़ुश नहीं आती
मीर मोहम्मदी बेदार