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दूर से आँखें दिखाती है नई दुनिया मुझे | शाही शायरी
dur se aankhen dikhati hai nai duniya mujhe

ग़ज़ल

दूर से आँखें दिखाती है नई दुनिया मुझे

हफ़ीज़ जालंधरी

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दूर से आँखें दिखाती है नई दुनिया मुझे
गुलशन-ए-हस्ती नज़र आता है इक सहरा मुझे

अक़्ल की वादी में हूँ गुम-कर्दा-ए-मक़्सूद-ए-इश्क़
ढूँढता हूँ और नहीं मिलता कोई रस्ता मुझे

ये भी इक धोका था नैरंग-ए-तिलिस्म-ए-अक़्ल का
अपनी हस्ती पर भी हस्ती का हुआ धोका मुझे

शौक़ मेरा तालिब-ए-दीदार हो जाता अगर
देखता 'मूसा' मुझे सीना मुझे जल्वा मुझे

शाएरी क्या कफ़्श-बरदार-ए-गिरामी हूँ 'हफ़ीज़'
बे-कमाली के सिवा कोई नहीं दावा मुझे