दूर साया सा है क्या फूलों में
छुपती फिरती है सबा फूलों में
इतनी ख़ुशबू थी कि सर दुखने लगा
मुझ से बैठा न गया फूलों में
चाँद भी आ गया शाख़ों के क़रीब
ये नया फूल खिला फूलों में
चाँद मेरा है सितारों से अलग
फूल मेरा है जुदा फूलों में
चाँदनी छोड़ गई थी ख़ुशबू
धूप ने रंग भरा फूलों में
तितलियाँ क़ुमरियाँ सब उड़ भी गईं
मैं तो सोया ही रहा फूलों में
रुक गया हाथ तिरा क्यूँ 'बासिर'
कोई काँटा तो न था फूलों में
ग़ज़ल
दूर साया सा है क्या फूलों में
बासिर सुल्तान काज़मी