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दूर किसी को याद आता हूँ रात मुझे पागल करती है | शाही शायरी
dur kisi ko yaad aata hun raat mujhe pagal karti hai

ग़ज़ल

दूर किसी को याद आता हूँ रात मुझे पागल करती है

कुमार पाशी

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दूर किसी को याद आता हूँ रात मुझे पागल करती है
घर से दूर निकल जाता हूँ रात मुझे पागल करती है

इक अनजाने शहर में देखूँ शक्ल कोई जानी-पहचानी
उस की ओर खिंचा जाता हूँ रात मुझे पागल करती है

दूर देस इक घर है अपना जैसे कोई इक सुंदर सपना
सपने में ख़ुद को पाता हूँ रात मुझे पागल करती है

'पाशी' दिल को चैन न आए घेरें उन की याद के साए
रात आए तो घबराता हूँ रात मुझे पागल करती है